Friday, September 12, 2008
ये हमारी न्याय व्यवस्था को क्या हो गया है। क्या हमारे बुद्धिजीवी अब सिर्फ़ अपने लिए जीने लगे हैं? क्यो हम इतने उदासीन होते जा रहे हैं की गलतियों पर आवाज उठाने से डरते हैं या आवाज़ उठाना ही नही चाहते? हमारी संवेदना क्यूँ मरती जा रही है, इसपर हमें गंभीरता से सोचना होगा, नही तो हमारा ये देश कहाँ जाएगा , इसकी किसी ने भी कल्पना नही की होगी। हमारी ये वर्तमान उदासीनता हमें भविष्य के अंधेरे में ले जा रही है। ज़रूरत है इसपर ज़रूरी विचार करने की , और इसपर संवाद करने की। जय हिंद जय भारत.
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